Thursday 22 September 2022

सुख का आधार सिद्ध श्री लक्ष्मी नारायण कवच

जीवन में सभी सुखों को देने वाला सिद्ध श्री लक्ष्मी नारायण कवच है जो नित्य दर्शन करता है पूजन करता है पाठ करता है उसके जीवन के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं अतः सिद्ध श्री नारायण कवच मंगवा कर आप अपने घर में स्थापित करें पूजन करें दर्शन करें आरती करें और प्रार्थना करें 

Thursday 30 April 2015

सामुद्रिक शास्त्र (अंग शास्त्र)Samudrik Shashtra in Hindi

Samudrik Shashtra in Hindi
भारत में भविष्य कथन की अनेकों पद्धतियां विद्यमान हैं। इन्हीं पद्धतियों में से एक है मनुष्य के अंगों और उसके लक्षण द्वारा भविष्य कथन करना। इस पद्धति का वर्णन "सामुद्रिक शास्त्र" में आता है।
क्या है सामुद्रिक शास्त्र? (What is Samudrik Shashtra) भविष्यपुराण के अनुसार भगवान कार्तिकेय ने एक ग्रंथ के रूप में लक्षण शास्त्र की रूपरेखा तैयार की थी। लेकिन इस ग्रंथ के पूरा होने से पहले ही भगवान शिव ने इसे समुद्र में फेंक दिया। जब शिव जी का गुस्सा शांत हुआ तो उन्होंने समुद्र से बचा हुआ कार्य पूरा करने को कहा और इस तरह इस शास्त्र को "सामुद्रिक शास्त्र" का नाम मिला। इस शास्त्र के अंतर्गत निम्न पद्धतियों द्वारा भविष्यवाणी की जाती है: 

Wednesday 29 April 2015

भद्रा काल विचार (Bhadra Kal Vichar)

Bhadra Kal Vichar
भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी क्रूर बताया गया है। इस उग्र स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उसे कालगणना या पंचाग के एक प्रमुख अंग करण में स्थान दिया। जहां उसका नाम विष्टी करण रखा गया। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया। किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनैतिक चुनाव कार्य सुफल देने वाले माने गए हैं।
पंचक (तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण) की तरह ही भद्रा योग को भी देखा जाता है। तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं. इस तरह एक तिथि के दो करण होते हैं. कुल 11 करण माने गए हैं जिनमें बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि चर करण और शकुनि, चतुष्पद, नाग और किस्तुघ्न अचर करण होते हैं. विष्टि करण को ही भद्रा भी कहा जाता है. कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी और शुक्लपक्ष की चतुर्थी, एकादशी के उत्तरार्ध में एवं कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी, शुक्लपक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है.
तिथि के पूर्वार्ध में (कृष्णपक्ष की 7:14 और शुक्लपक्ष की 8:15 तिथि) दिन की भद्रा कहलाती है. तिथि के उत्तरार्ध की (कृष्णपक्ष की 3:10 और शुक्लपक्ष की 4:11) की भद्रा रात्री की भद्रा कहलाती है. यदि दिन की भद्रा रात्री के समय और रात्री की भद्रा दिन के समय आ जाए तो उसे शुभ माना जाता है. भद्राकाल में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश, यज्ञोपवित, रक्षाबंधन या कोई भी नया काम शुरू करना वर्जित माना गया है. लेकिन भद्राकाल में ऑपरेशन करना, मुकदमा करना, किसी वस्तु का कटना, यज्ञ करना, वाहन खरीदना स्त्री प्रसंग संबंधी कर्म शुभ माने गए हैं.
सोमवार व शुक्रवार की भद्रा कल्याणी, शनिवार की भद्रा वृश्चिकी, गुरुवार की भद्रा पुण्यैवती, रविवार, बुधवार व मंगलवार की भद्रा भद्रिका कहलाती है. शनिवार की भद्रा अशुभ मानी जाती है.


Thursday 23 April 2015

प्रदोष व्रत कथा
Pradosh Vrat Katha

Pradosh(प्रदोष व्रत कथा)
प्रत्येक माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी के दिन संध्याकाल के समय को "प्रदोष" कहा जाता है और इस दिन शिवजी को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है।प्रदोष व्रत की कथा निम्न है: 
प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।
कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरु किया। 
एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया। 
इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुन: आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती। 

रामनवमी पूजा विधिRam Navami Puja Vidhi

Ram Navami Puja Vidhi
हिन्दू मान्यतानुसार भगवान श्रीराम को विष्णु जी का अवतार माना जाता है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मध्याह्न के समय मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी का जन्म हुआ था। 
रामनवमी 2015 (Ram Navami 2015): इस वर्ष रामनवमी 28 मार्च को है और इस दिन पूजा का शुभ समय दोपहर 11 बजकर 13 मिनट से लेकर 1 बजकर 39 मिनट तक का है।
श्री राम नवमी पूजा विधि (Shri Ram Navami Puja Vidhi): नारद पुराण के अनुसार इस दिन भक्तों को उपवास करना चाहिए। श्री राम जी की पूजा-अर्चना करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और गौ, भूमि, वस्त्र आदि का दान देना चाहिए। इसके बाद भगवान श्रीराम की पूजा संपन्न करनी चाहिए। 


श्री रामचन्द्रजी की आरती
Shri Ram Chandra Ji Ki Aarti

Ramji(श्री रामचन्द्रजी की आरती)
भगवान श्री राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के नाम को ही मंत्र माना जाता है। "राम" नाम का जाप करने मात्र से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। श्री रामचन्द्रजी को स्मरण करने के लिए निम्न आरती का भी पाठ किया जाता है। 

रामचन्द्रजी की आरती (Shri Ram Chandra Ji Ki Aarti in Hindi)
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं || 

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
श्री राम श्री राम....
कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनीलनीरद सुन्दरं |
पट पीत मानहु तडीत रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ||

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
श्री राम श्री राम....
भजु दीनबंधु दिनेश दानवदै त्यवंशनिकंदनं | 
रघुनंद आंनदकंद कोशलचंद दशरथनंदनं ||

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
श्री राम श्री राम...
सिर मुकुट कूंडल तिलक चारु उदारु अंग विभुषणं |
आजानु भुजा शरा चाप धरा, संग्राम जित खर दुषणं ||
भुजा शरा चाप धरा, संग्राम जित खर दुषणं ||
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं
इति वदित तुलसीदास शंकरशेषमुनिमनरंजनं | 
मम ह्रदयकंजनिवास कुरु, कमदि खल दल गंजनं | |

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं ||
श्री राम श्री राम...




Kanya Sankranti Punya Kaal Muhurta


Punya Kaal Muhurta = 12:29 to 18:20
Duration = 5 Hours 51 Mins
Sankranti Moment = 12:29
Mahapunya Kaal Muhurta = 12:29 to 12:53
Duration = 0 Hours 24 Mins
Note - 24-hour clock with local time of New Delhi & DST adjusted for all Muhurat timings (if applicable)
Kanya Sankranti or Sankranthi 2015

Kanya Sankranti marks the beginning of the sixth month in Hindu Solar Calendar. All twelve Sankrantis in the year are highly auspicious for Dan-Punya activities. Only certain time duration before or after each Sankranti moment is considered auspicious for Sankranti related activities.

For Kanya Sankranti sixteen Ghatis after the Sankranti moment are considered Shubh or auspicious and the time window from Sankranti to sixteen Ghati after Sankranti is taken for all Dan-Punya activities.

Kanya Sankranti day is also celebrated as Vishwakarma Puja day.

In South India Sankranti is called as Sankramanam.