Thursday 30 April 2015

सामुद्रिक शास्त्र (अंग शास्त्र)Samudrik Shashtra in Hindi

Samudrik Shashtra in Hindi
भारत में भविष्य कथन की अनेकों पद्धतियां विद्यमान हैं। इन्हीं पद्धतियों में से एक है मनुष्य के अंगों और उसके लक्षण द्वारा भविष्य कथन करना। इस पद्धति का वर्णन "सामुद्रिक शास्त्र" में आता है।
क्या है सामुद्रिक शास्त्र? (What is Samudrik Shashtra) भविष्यपुराण के अनुसार भगवान कार्तिकेय ने एक ग्रंथ के रूप में लक्षण शास्त्र की रूपरेखा तैयार की थी। लेकिन इस ग्रंथ के पूरा होने से पहले ही भगवान शिव ने इसे समुद्र में फेंक दिया। जब शिव जी का गुस्सा शांत हुआ तो उन्होंने समुद्र से बचा हुआ कार्य पूरा करने को कहा और इस तरह इस शास्त्र को "सामुद्रिक शास्त्र" का नाम मिला। इस शास्त्र के अंतर्गत निम्न पद्धतियों द्वारा भविष्यवाणी की जाती है: 

Wednesday 29 April 2015

भद्रा काल विचार (Bhadra Kal Vichar)

Bhadra Kal Vichar
भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी क्रूर बताया गया है। इस उग्र स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही भगवान ब्रह्मा ने उसे कालगणना या पंचाग के एक प्रमुख अंग करण में स्थान दिया। जहां उसका नाम विष्टी करण रखा गया। भद्रा की स्थिति में कुछ शुभ कार्यों, यात्रा और उत्पादन आदि कार्यों को निषेध माना गया। किंतु भद्रा काल में तंत्र कार्य, अदालती और राजनैतिक चुनाव कार्य सुफल देने वाले माने गए हैं।
पंचक (तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण) की तरह ही भद्रा योग को भी देखा जाता है। तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं. इस तरह एक तिथि के दो करण होते हैं. कुल 11 करण माने गए हैं जिनमें बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि चर करण और शकुनि, चतुष्पद, नाग और किस्तुघ्न अचर करण होते हैं. विष्टि करण को ही भद्रा भी कहा जाता है. कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी और शुक्लपक्ष की चतुर्थी, एकादशी के उत्तरार्ध में एवं कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी, शुक्लपक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है.
तिथि के पूर्वार्ध में (कृष्णपक्ष की 7:14 और शुक्लपक्ष की 8:15 तिथि) दिन की भद्रा कहलाती है. तिथि के उत्तरार्ध की (कृष्णपक्ष की 3:10 और शुक्लपक्ष की 4:11) की भद्रा रात्री की भद्रा कहलाती है. यदि दिन की भद्रा रात्री के समय और रात्री की भद्रा दिन के समय आ जाए तो उसे शुभ माना जाता है. भद्राकाल में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश, यज्ञोपवित, रक्षाबंधन या कोई भी नया काम शुरू करना वर्जित माना गया है. लेकिन भद्राकाल में ऑपरेशन करना, मुकदमा करना, किसी वस्तु का कटना, यज्ञ करना, वाहन खरीदना स्त्री प्रसंग संबंधी कर्म शुभ माने गए हैं.
सोमवार व शुक्रवार की भद्रा कल्याणी, शनिवार की भद्रा वृश्चिकी, गुरुवार की भद्रा पुण्यैवती, रविवार, बुधवार व मंगलवार की भद्रा भद्रिका कहलाती है. शनिवार की भद्रा अशुभ मानी जाती है.


Thursday 23 April 2015

प्रदोष व्रत कथा
Pradosh Vrat Katha

Pradosh(प्रदोष व्रत कथा)
प्रत्येक माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी के दिन संध्याकाल के समय को "प्रदोष" कहा जाता है और इस दिन शिवजी को प्रसन्न करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है।प्रदोष व्रत की कथा निम्न है: 
प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी। एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था। उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी। ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।
कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई। वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भदेश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरु किया। 
एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई। ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त "अंशुमती" नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे। गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए, कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया। 
इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुन: आधिपत्य प्राप्त किया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था। स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती। 

रामनवमी पूजा विधिRam Navami Puja Vidhi

Ram Navami Puja Vidhi
हिन्दू मान्यतानुसार भगवान श्रीराम को विष्णु जी का अवतार माना जाता है। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मध्याह्न के समय मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी का जन्म हुआ था। 
रामनवमी 2015 (Ram Navami 2015): इस वर्ष रामनवमी 28 मार्च को है और इस दिन पूजा का शुभ समय दोपहर 11 बजकर 13 मिनट से लेकर 1 बजकर 39 मिनट तक का है।
श्री राम नवमी पूजा विधि (Shri Ram Navami Puja Vidhi): नारद पुराण के अनुसार इस दिन भक्तों को उपवास करना चाहिए। श्री राम जी की पूजा-अर्चना करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और गौ, भूमि, वस्त्र आदि का दान देना चाहिए। इसके बाद भगवान श्रीराम की पूजा संपन्न करनी चाहिए। 


श्री रामचन्द्रजी की आरती
Shri Ram Chandra Ji Ki Aarti

Ramji(श्री रामचन्द्रजी की आरती)
भगवान श्री राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के नाम को ही मंत्र माना जाता है। "राम" नाम का जाप करने मात्र से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। श्री रामचन्द्रजी को स्मरण करने के लिए निम्न आरती का भी पाठ किया जाता है। 

रामचन्द्रजी की आरती (Shri Ram Chandra Ji Ki Aarti in Hindi)
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं || 

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
श्री राम श्री राम....
कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनीलनीरद सुन्दरं |
पट पीत मानहु तडीत रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ||

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
श्री राम श्री राम....
भजु दीनबंधु दिनेश दानवदै त्यवंशनिकंदनं | 
रघुनंद आंनदकंद कोशलचंद दशरथनंदनं ||

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
श्री राम श्री राम...
सिर मुकुट कूंडल तिलक चारु उदारु अंग विभुषणं |
आजानु भुजा शरा चाप धरा, संग्राम जित खर दुषणं ||
भुजा शरा चाप धरा, संग्राम जित खर दुषणं ||
श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं
इति वदित तुलसीदास शंकरशेषमुनिमनरंजनं | 
मम ह्रदयकंजनिवास कुरु, कमदि खल दल गंजनं | |

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं |
नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं ||
श्री राम श्री राम...




Kanya Sankranti Punya Kaal Muhurta


Punya Kaal Muhurta = 12:29 to 18:20
Duration = 5 Hours 51 Mins
Sankranti Moment = 12:29
Mahapunya Kaal Muhurta = 12:29 to 12:53
Duration = 0 Hours 24 Mins
Note - 24-hour clock with local time of New Delhi & DST adjusted for all Muhurat timings (if applicable)
Kanya Sankranti or Sankranthi 2015

Kanya Sankranti marks the beginning of the sixth month in Hindu Solar Calendar. All twelve Sankrantis in the year are highly auspicious for Dan-Punya activities. Only certain time duration before or after each Sankranti moment is considered auspicious for Sankranti related activities.

For Kanya Sankranti sixteen Ghatis after the Sankranti moment are considered Shubh or auspicious and the time window from Sankranti to sixteen Ghati after Sankranti is taken for all Dan-Punya activities.

Kanya Sankranti day is also celebrated as Vishwakarma Puja day.

In South India Sankranti is called as Sankramanam. 

Wednesday 22 April 2015

इस्लाम धर्म  


पर्व और त्यौहार (Festivals)


रमजान (Ramazan)

Ramazan
इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से नौंवा महीना रमज़ान का होता है। इस महीने मुसलमान लोग रोज़ा 
रखते हैं और उसके बाद चांद देखकर ईद-उल-फित्र का त्यौहार मनाते हैं। मान्यता है कि रमज़ान के 
महीने में ही कुरआन अवतरित हुई थी।
रमज़ान और रोज़े 
रमज़ान के महीने में रोज़े रखना अनिवार्य माना गया है। इस महीने सभी मुसलमानों को अपनी 
चाहतों पर नकेल कसकर अल्लाह की इबादत करते हैं। यह महीना सब्र का महीना माना जाता है।
रमज़ान में नियम 
• रमज़ान के महीने में सुबह सूरज निकलने से पहले सहरी खाई जाती है और फिर शाम में सूरज 
  ढलने के बाद एक तय समय पर ही इफ्तार किया जाता है। इस बीच किसी भी प्रकार का अन्न 
  ग्रहण करना या पानी पीने की सख्त मनाही होती है।
• रमज़ान के महीने में मुसलमान शिद्दत से नमाज़ पढ़ते हैं और कुरान-शरीफ की तिलावत करते हैं।
रमज़ान में प्रतिबंधित कार्य
रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने के दौरान लोगों को कई कड़े नियमों का पालन करना पड़ता है। जैसे
रमज़ान के महीने में एक मुसलमान को रोज़े के दौरान खान-पान से बचना चाहिए, किसी से लड़ाई-
झगड़ा नहीं करना चाहिए, सादगी से रखना चाहिए। वक्त पर नमाज पढ़ना चाहिए और कुरआन के 
पदों को जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए ।
रमज़ान में छूट
रमज़ान के महीने में रोज़े रखने से केवल बीमारी में या बूढ़े लोगों को या सफर कर रहे लोगों को 
ही छूट दी गई हैं। साथ ही गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाने वाली माता को भी रोज़ें रखने या 
ना रखने की आजादी है।
रमज़ान का महत्व
मान्यता है कि रमज़ान के महीन में रोज़ा रखकर व अल्लाह की इबादत करके इंसान अपने ख़ुदा के 
करीब जाता है। ऐसा करने से इंसान खुदा से अपने किए हुए गुनाहों की तौबा मांग सकता है। लड़का
हो या लड़की सभी पर रमज़ान के महीने में रोज़ा रखना एक फर्ज होता है।

ईद-उल-ज़ुहा (बकरीद) (Eid-ul-juha (Bakrid))

Eid-ul-Juha (Bakrid)
ईद-इल-फित्र के दो तीन महीने बाद ईद-उल-ज़ुहा का त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार कुरबानी 
का त्यौहार है। इस्लाम धर्म का यह दूसरा प्रमुख त्यौहार है। इसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता 
है। 
ईद-उल-जुहा 2015 (Eid Ul Zuha 2015) 
वर्ष 2015 में ईद-उल-जुहा का त्यौहार 22 सितंबर को मनाया जाएगा। 
ईद-उल-ज़ुहा की मान्यता (Importance of Eid Ul Zuha) 
ईद-उल-ज़ुहा हज़रत इब्राहिम की कुरबानी की याद के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन हज़रत 
इब्राहिम अल्लाह के हुक्म पर अल्लाह के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे हज़रत 
इस्माइल को कुरबान करने पर राजी हुए थे। इस पर्व का मुख्य लक्ष्य लोगों में जनसेवा और अल्लाह
की सेवा के भाव को जगाना है। ईद-उल-ज़ुहा का यह पर्व इस्लाम के पांचवें सिद्धान्त हज की भी पूर्ति करता है। 
ईद-उल-ज़ुहा की कहानी (Story of Eid Ul Zuha) 
कुरआन में बताया गया है कि एक दिन अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय 
चीज की कुरबानी मांगी। हज़रत इब्राहिम को सबसे प्रिय अपना बेटा लगता था। उन्होंने अपने बेटे 
की कुरबानी देने का निर्णय किया। लेकिन जैसे ही हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे की बलि लेने के 
लिए उसकी गर्दन पर वार किया, अल्लाह चाकू की धार से हज़रत इब्राहिम के पुत्र को बचाकर एक 
भेड़ की कुर्बानी दिलवा दी। इसी कारण इस पर्व को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है।
ईद-उल-ज़ुहा को कैसे मनाया जाता है? 
• ईद-उल-ज़ुहा के दिन मुसलमान किसी जानवर जैसे बकरा, भेड़, ऊंट आदि की कुरबानी देते हैं। 
  इस कुरबानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है: एक खुद के लिए, एक सगे-संबंधियों के 
  लिए और एक गरीबों के लिए। 
• इस दिन सभी लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज़ पढ़ते हैं। मर्दों को मस्जिद व 
  ईदगाह और औरतों को घरों में ही पढ़ने का हुक्म है। नमाज़ पढ़कर आने के बाद ही कुरबानी की 
  प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। 
• ईद उल फित्र की तरह ईद उल ज़ुहा में भी ज़कात देना अनिवार्य होता है ताकि खुशी के इस मौके
  पर कोई गरीब महरूम ना रह जाए।

Tuesday 21 April 2015


ईद उल-फ़ित्र (Eid-ul-fitr)

Eid-ul-fitr
रमज़ान के महीने की आखिरी रात चांद रात के रूप में मनाई जाती है। चांद रात में ईद का चांद देखकर मुसलमान अगले दिन “ईद-उल-फित्र” मनाते हैं। ईद-उल-फित्र इस्लाम के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। इसे मीठी ईद भी कहते हैं।
ईद-उल-फित्र 2015 
साल 2015 में ईद उल फित्र 17 जुलाई को मनाई जाएगी।
ईद-उल-फित्र का महत्व 
हदीस के अनुसार ईद उल फित्र अल्लाह की दी हुई पेशकश या भेंट हैं। रमज़ान के पूरे महीने रोज़े रख मुस्लिम मन और तन से पवित्र हो जाते हैं और अल्लाह को लगातार याद कर एक आध्यात्मिक संबंध का अनुभव करते हैं। ईद उल फित्र इस अनुभव को और भी यादगार बनाने का काम करता है।
ईद-उल-फित्र कैसे मनाई जाती है? 
ईद-उल-फित्र के दिन सुबह की नमाज़ का खास महत्व होता है। लोग पारंपरिक कपड़े पहनकर मस्जिद या ईदगाह में नमाज़ पढ़ने जाते हैं। आमतौर पर इस वक्त मस्जिदों में इतनी भीड़ होती है कि लोगों को खुले मैदान में भी नमाज़ अदा करनी पड़ती है। इस पर्व से जुड़ी कुछ अन्य रोचक जानकारियां निम्न हैं:
• नमाज के बाद लोग एक-दूसरे से गले मिलकर ईद मुबारक कहते हैं। इस परंपरा के कारण ईद-उल-फित्र भाईचारे का भी प्रतीक बन चुका है।
• सभी मुसलमानों को ईद उल फित्र के मौके पर फ़ितरा यानी ज़कात अदा करना आवश्यक माना गया है।
• इस दिन घरों में मीठी सेवईं और तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और इन्हें दोस्तों, परिजनों और सगे-संबंधियों में बांटा जाता हैं।
• इस दिन बड़े अपने छोटों को ईदी के तौर पर कोई तोहफ़ा या कुछ रकम भी अदा करते हैं।
जकात का महत्व (Importance of Zakat) 
ईद उल फित्र के दिन जकात अदा करना बेहद जरूरी माना गया है। “ज़कात” उस धन को कहते हैं जो अपनी कमाई से निकाल कर अल्लाह या धर्म की राह में खर्च किया जाए। इस धन का प्रयोग समाज के गरीब तबके के कल्याण और सेवा के लिए किया जाता है।

जैन धार्मिक स्थल (Jain Religious Places)

पारसनाथ जैन मंदिर (Parasnath Jain Mandir)

Parasnath Jain Mandir
पारसनाथ जैन मंदिर
जैनियों के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पारसनाथ अपने धार्मिक महत्व और प्राकृतिक सौंदर्य से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। पारसनाथ जैन मंदिर जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ व अन्य 19 तीर्थंकरों की निर्वाण स्थली है। इस कारण से इस मंदिर को जैन धर्म के प्रमुख तीर्थों में गिना जाता है।
पारसनाथ जैन मंदिर का इतिहास (History of Parasnath Jain Mandir) 
पारसनाथ जैन मंदिर कोलकाता के श्यामबाजार में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1867 में किया गया था। यह मंदिर 10वें तीर्थंकर शीतलनाथ को समर्पित किया गया है। यह मंदिर अपनी खूबसूरत नक्काशी और मूर्तिकारी के लिए भी प्रसिद्ध है।
मंदिर के दर्शन का समय (Timings) 
इस भव्य मंदिर के कपाट सुबह 6 बजे से साढ़े 11 बजे तक और फिर दोपहर बाद 3 बजे से रात 7 बजे तक श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं।

श्रवणबेलगोला (Shravanabelagola)

Shravanabelagola

श्रवणबेलगोला
श्रवणबेलगोला मंदिर कर्नाटक राज्य के मैसूर में स्थित एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ है। श्रवणबेलगोला में 
मुख्य आकर्षण का केंद्र गोमतेश्वर स्तंभ है। जैन तीर्थंकर में बाहुबलि सर्वप्रथम मोक्ष प्राप्त करने 
वाले तीर्थंकर थे। 
श्रवणबेलगोला का इतिहास (History of Shravanabelagola)
श्रवणबेलगोला कुंड पहाड़ी की तराई पर स्थित है। यह जगह चन्द्रबेत और इन्द्रबेत पहाड़ियों के बीचो-
बीच स्थित है। प्राचीनकाल में यह स्थान जैन धर्म का महान केन्द्र था। जैन अनुश्रुतियों के मुताबिक मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने अपने राज्य का परित्याग कर अंतिम दिन मैसूर के श्रवणबेलगोला में व्यतीत किया था। 
गोमतेश्वर प्रतिमा 
मान्यता है कि यहां स्थित गोमतेश्वर प्रतिमा 1000 वर्षों से भी पुरानी है। यह इंद्रगिरि पर्वत पर 58
.8 फीट ऊंची एक पत्थर से बनी मूर्ति है। जैनियों में मान्यता है कि बाहुबली गोमतेश्वर मोक्ष पाने 
वाले पहले व्यक्ति थे। हर 12 साल पर श्रद्धालु यहां महामस्तकाभिषेक के लिए जुटते हैं। इस मूर्ति
को केसर, घी, दूध, दही, सोने के सिक्कों तथा कई अन्य वस्तुओं से नहलाया जाता है। 
श्रवणबेलगोला की मान्यता (Importance of shravanabelagola)श्रवणबेलगोला में स्थापित 
गोमतेश्वर की प्रतिमा के लिए यह मान्यता है कि इस मूर्ति में शक्ति, साधुत्व, बल तथा उदारवादी
भावनाओं का अद्भुत प्रदर्शन होता है।

पालिताना (Palitana)

Palitana
पालिताना (palitana) 
गुजरात के भावनगर जिला के शतरुंजया पहाड़ पर पालिताना जैन मंदिर स्थित हैं। 900 से अधिक मंदिरों वाले शतरुंजया पहाड़ पर स्थित पालिताना जैन मंदिर जैन धर्म के 24 तीर्थंकर भगवान को समर्पित हैं। पालिताना के इन जैन मंदिरों को टक्स भी कहा जाता है। यह जैन धर्म के पाँच प्रमुख तीर्थों में से एक है। इस मंदिर की यात्रा करना प्रत्येक जैन अपना कर्तव्य मानते हैं। 
पालिताना का इतिहास (History of palitana) 
पालिताना का इतिहास राजा उनाद जी की साहसिक गाथाओं से शुरु होता है। राजा उनाद ने सीहोर और भावनगर के राजा से युद्ध कर उन्हें पराजित किया था। शतरुंजया पर्वत पर स्थित जैन मंदिर पहले तीर्थंकर ऋषभदेव को समर्पित हैं। भगवान ऋषभदेव जी को आदिनाथ के नाम से भी जाना जाता है। 
पालिताना के मुख्य मंदिर (Main temple of palitana) 
पालिताना में कई जैन मंदिर हैं जिनमें आदिनाथ, कुमारपाल, विमलशाह, समप्रतिराजा, चौमुख आदि मंदिर बेहद आकर्षक हैं। संगमरमर एवं प्लास्टर से बने यह मंदिर अपनी नक्काशी व मूर्तिकला विश्वभर में प्रसिद्ध है। 
पालिताना की मान्यता (Importance of palitana): 
पालिताना के मंदिर 11वीं एवं 12वीं सदी में बने हैं। इन मंदिरों के बारे में मान्यता है कि ये मंदिर जैन तीर्थंकरों को समर्पित हैं। कई जैन तीर्थकरों ने यहां पर निर्वाण यानि मोक्ष प्राप्त किया था। इसी कारण इस क्षेत्र को "सिद्धक्षेत्र" भी कहते हैं। 
पालिताना की मान्यता है कि रात के समय भगवान विश्राम करते हैं। इस कारण रात के समय मंदिर को बंद कर दिया जाता है। इन मंदिरों के दर्शन के लिए गए सभी श्रद्धालुओं को संध्या होने से पहले दर्शन करके पहाड़ से नीचे उतरना पड़ता है।

कुमार ग्राम प्राचीन मंदिर (Kumar Gram Prachin Mandir)

Kumar Gram Prachin Mandir
कुमार ग्राम प्राचीन मंदिर
जैन धर्म के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक गिने जाने वाला मंदिर कुमार ग्राम प्राचीन मंदिर बिहार के 
जुमई जिले में स्थित है। यह मंदिर भगवान महावीर को समर्पित है, क्योंकि भगवान महावीर की 
जन्मस्थली बिहार ही है। 
कुमार ग्राम प्राचीन मंदिर (History of Kumar gram prachin mandir) 
जमुई जिले में जैन धर्म से जुड़े दो प्रसिद्ध मंदिर हैं। एक कानन में स्थापित कुमार ग्राम प्राचीन मंदिर
तो दूसरा सिकंदरा का जैन मंदिर। दोनों ही मंदिर जैन धर्म के अनुयायियों के लिए प्रमुख धार्मिक 
केंद्र के तौर पर जाने जाते हैं। 
माना गया है कि कानन में नौवें तीर्थंकर सुविधिनाथ का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि इस 
जगह पर इंदापी जिन्हें इंद्रप्रस्थ के नाम से भी जाना जाता था, वह भी वहां घूमने गए थे। इसलिए 
इस जगह का रुतबा और भी बढ़ जाता है। यहां स्थित जैन धर्मशाला भक्तों की सेवा में सदैव तत्पर
नजर आता है। 
दर्शनीय स्थल (Attractions Places) 
यहां गुरुद्वारा पक्की संगत, मिन्टो टॉवर, जैन मंदिर धर्मशाला, चन्द्रशेखर संग्रहालय, काली मंदिर, 
श्रमभारती तथा सेंट थॉमस चर्च आदि जगहों का भी भ्रमण किया जा सकता है।

Monday 20 April 2015

पार्श्वनाथ जैन मंदिर (Parshavnath Jain Mandir)

Parshavnath Jain Mandir
पार्श्वनाथ जैन मंदिर
पार्श्वनाथ जैन मंदिर जिसे लोग करेड़ा पार्श्वनाथ जैन मंदिर के नाम से भी जानते हैं, राजस्थान के 
चित्तौड़गढ़ से लगभग 50 किमी दूर स्टेट हाइवे नंबर नौ पर गाँव भूपालसागर में स्थित है। हर साल
मंदिर में लाखों श्रद्धालु तथा पर्यटक आते हैं। इस मंदिर को खूबसूरत सफ़ेद पत्थरों से बनाकर तैयार 
किया गया है। 
पार्श्वनाथ जैन मंदिर का इतिहास (History of Parshavnath jain Mandir) 
मंदिर के इतिहास के बारे में अनेकों बात हैं, जिसमें सुकृत सागर ग्रंथ प्रमुख है। जिसमें बताया गया
है कि मंदिर का निर्माण आचार्य धर्मघोष सूरीजी के उपदेशों से प्रभावित होकर मध्य प्रदेश के 
तत्कालीन महामंत्री संघपति देवाशाह के पुत्र पेथड़शाह ने विक्रम संवत ने 1321 में करवाया था, 
जिसे विक्रम संवत ने 1340 में विशाल रूप दिया। 
इस मंदिर में जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की श्याम वर्ण पद्मासनस्थ मूर्ति 
विराजमान है। माना जाता है कि इस मूर्ति को विक्रमी सावंत ने 1665 में बनवाई थी। 
पार्श्वनाथ जैन मंदिर की मान्यता (Importance of Parshavnath jain Mandir) 
इस मन्दिर के बारे में यह मान्यता है कि जो व्यक्ति इस मन्दिर के पूर्ण दर्शन कर लेता है, उसे 52
तीर्थों के दर्शन का लाभ प्राप्त होता है। 
साथ ही कई लोगों का मानना है कि प्रतिवर्ष पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी को सूर्य की पहली 
किरण सीधी श्यामवर्ण पार्श्वनाथ प्रतिमा पर पड़ती है, जिसे देखने हज़ारों की संख्या में भक्त यहां 
आते हैं। 
मंदिर के दर्शन का समय (Timings) 
पार्श्वनाथ जैन मंदिर के कपाट प्रात: 5 बजे खुल जाते हैं। इसके पश्चात प्रक्षाल पूजा, केसर पूजा, 
पुष्प पूजा व मुकुट धारण किया जाता है। 10 बजे सुबह की आरती तथा शाम को 7:30 बजे आरती
के साथ मंगलदीप होती है।

गोपाचल पर्वत (Gopachal Parvat)

Gopachal Parvat
गोपाचल पर्वत
ग्वालियर किले के अंचल में गोपाचल पर्वत है, जहां प्राचीन जैन मूर्ति समूह का अद्वितीय स्थान है| 
पर्वत को तराशकर यहां सन 1398 से 1536 के मध्य हजारों विशाल दिगंबर जैन मूर्तियां बनाई गई 
हैं।
गोपाचल पर्वत का इतिहास (History of Gopachal Parvat)
तोमरवंशी राजा वीरमदेव, डूंगर सिंह व कीर्ति सिंह के काल में इन विशाल मूर्तियों का निर्माण हुआ 
था। गोपाचल पर्वत सृष्टि को अहिंसा तथा हिंदू धर्म में आई बलिप्रथा को खत्म करने का सन्देश देता
है। यहां स्थित विभिन्न मूर्तियों द्वारा समाज को कई तरह के संदेश देने की कोशिश की गई है। 
गोपाचल पर्वत का मुख्य आकर्षण भगवान पार्श्वनाथ की पद्मासन प्रतिमा है।
किंवदंती है कि डूंगर सिंह ने जिस श्रद्धा एवं भक्ति से जैन मत का पोषण किया था, उसके विपरीत
शेरशाह शूरी ने पर्वत की इन मूर्तियों को तोड़कर खंडित किया। उसने एक बार स्वयं पार्श्वनाथ की 
प्रतिमा को खंडित करने के लिए तलवार उठाया था, लेकिन उसकी भुजाओं में शक्ति नहीं बची थी। 
इस चमत्कार से भयभीत होकर वह भाग खड़ा हुआ था।
गोपाचल पर्वत की मान्यता (Importance of Gopachal Parvat) 
इस पर्वत पर स्थित मूर्तियों द्वारा कर्म, धर्म, मोक्ष, पुनर्जन्म जैसे मुद्दों पर रोशनी डालने का प्रयास
किया गया है।

रणकपुर का जैन मंदिर (Ranakpur Ka Jain Mandir)

Ranakpur Ka Jain Mandir
रणकपुर जैन मंदिर
राजस्थान का रणकपुर जैन मंदिर, जैन धर्म के पांच प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। रणकपुर का 
जैन मंदिर खूबसूरत नक्काशी और अपनी प्राचीनता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यह जैन 
तीर्थंकर आदिनाथ जी को समर्पित है। इसकी गणना भारत के सबसे विशाल और खूबसूरत जैन 
मंदिरों में होती है।
रणकपुर का जैन मंदिर का इतिहास (History of Ranakpur Jain Mandir)
इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में राणा कुंभा के शासनकाल में हुआ था। इन्हीं के नाम पर 
इस जगह का नाम रणकपुर पड़ा। रणकपुर में एक चतुर्मुखी जैन मंदिर है, जो भगवान ऋषभदेव को 
समर्पित है। इसके अलावा संगमरमर के टुकड़े पर भगवान ऋषभदेव के पद चिह्न भी हैं, जो भगवान
ऋषभदेव तथा शत्रुंजय की शिक्षाओं की याद दिलाते हैं।
माना जाता है कि 1446 विक्रम संवत में इस मंदिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ था जो 50 वर्षों 
से अधिक समय तक चला। इसके निर्माण में करीब 99 लाख रुपए का खर्च आया था। मंदिर में चार
प्रवेश द्वार हैं, मुख्य गृह में तीर्थंकर आदिनाथ की संगमरमर की चार विशाल मूर्तियां हैं। करीब 72 
इंच ऊंची ये मूर्तियां चार अलग-अलग दिशाओं की ओर उन्मुख हैं।
रणकपुर का जैन मंदिर की मान्यता (Importance of Ranakpur Jain Mandir)
मंदिर की मान्यता है कि मंदिर में प्रवेश करने से मनुष्य जीवन-मृत्यु की 84 योनियों से मुक्ति 
प्राप्त करके मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है।

दिलवाड़ा जैन मंदिर (Dilwada Jain Mandir)

Dilwada Jain Mandir
दिलवाड़ा जैन मंदिर
दिलवाड़ा जैन मंदिर पांच मंदिरों का एक समूह है। यह राजस्थान के माउंट आबू में स्थित है। इन 
मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और तेरहवीं शताब्दी के बीच हुआ था। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के 
तीर्थंकरों को समर्पित हैं। जैन मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने है। अपनी खूबसूरती समेत यह 
मंदिर धार्मिक भावना के लिए भी मशहूर हैं।
दिलवाड़ा जैन मंदिर का इतिहास (History of Dilwada Jain Mandir)
दिलवाड़ा जैन मंदिर प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है। इस मंदिर में जैन धर्म के कई
तीर्थंकरों जैसे आदिनाथ जी, नेमिनाथ जी, पार्श्वनाथ जी और महावीर जी की मूर्तियां स्थापित हैं। 
इस देवालय में देवरानी-जेठानी मंदिर भी है जिनमें भगवान आदिनाथ और शांतिनाथ की प्रतिमाएं 
स्थापित है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर के पांच मंदिर (Five Temples of Jain Mandir)
दिलवाड़ा जैन मंदिर पांच मंदिरों का समूह है यह पांच मंदिर निम्न हैं:
•विमल वसाही
•लुना वसाही
•पार्श्वनाथ मंदिर
•महावीर स्वामी मंदिर
•पिथालर मंदिर 
दिलवाड़ा जैन मंदिर का महत्व (dilwada jain mandir ka mahatva) 
दिलवाड़ा जैन मंदिर पर्यटकों का स्वर्ग तो है ही साथ ही यह श्रृद्धालुओं के लिए अध्यात्म का 
केन्द्र है। यहां एक ही जगह कई तीर्थंकरों के दर्शन होते हैं। उनके जीवन से जुड़ी बाते जानने को 
मिलती है। यहां पूजा के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए नहाने की भी व्यवस्था होती है क्यूंकि 
मूर्ति पूजा से पहले स्नान अनिवार्य है।

श्री धर्म मंगल जैन विधापीठ (Sri Dharm Mangal Jain Vidhapeeth)

Sri Dharm Mangal Jain Vidhapeeth
श्री धर्म मंगल जैन विधापीठ
श्वेतांबर को समर्पित श्री धर्म मंगल जैन विधापीठ झारखंड राज्य में स्थित है। इसकी स्थापना
1972 में हुई। यह आचार्य श्री पद्म प्रभ सूरीश्वर की प्रेरणा से निर्मित हुआ है। यहां पूजा-अर्चना के 
लिए एक भव्य मंदिर संगमरमर के खूबसूरत पत्थरों से बना है। यहां 14 मंदिरों का एक विशाल 
समूह है। 
श्री धर्म मंगल जैन विधापीठ की मान्यता (Importance of sri Dharm Mangal Jain 
Vidhapeeth) 
जैन धर्म में एक प्राचीन धारणा है कि सृष्टि रचना के समय से ही सम्मेद शिखर और अयोध्या दो प्रमुख तीर्थों का अस्तित्व रहा है। इसलिए इन्हें अमर तीर्थ माना गया है। कहा जाता है कि यहां तीर्थंकरों और तपस्वी संतों ने कड़ी तपस्या और ध्यान के जरिए मोक्ष प्राप्त किया
जैन धर्म के शास्त्रों के मुताबिक जीवन में एक बार सम्मेद शिखर तीर्थ की यात्रा करने वाला इंसान
मृत्यु के बाद पशु योनि और नरक से मुक्त हो जाता है। यह भी कहा गया है कि 24 में से 20 तीर्थं
करों ने श्री सम्मेद शिखर पर ही मोक्ष पाया। 
सम्मेद शिखर तीर्थ के रक्षक भोमियाजी का मंदिर अतिप्राचीन माना गया है। उन्हें जाग्रत देव माना
गया है। कहा जाता है कि जो श्रद्धा भाव से मन्नत मांगता है, उसे सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है।

जैन धर्म त्यौहार (Jain Festival Calendar January - 2015)

तिथित्यौहार
2 जनवरी 2015रोहिणी व्रत
3 जनवरी 2015श्री अभिनंदननाथजी केवल ज्ञान
3 जनवरी 2015मेला बड़वाणीजी
4 जनवरी 2015श्रीधर्मनाथजी केवल ज्ञान
6 जनवरी 2015षोडश कारण व्रत
6 जनवरी 2015मुष्टि विधान व्रत
11 जनवरी 2015श्री प्रभु जी गर्भ
11 जनवरी 2015आ. श्री महावीर कीर्ति पुण्य
17 जनवरी 2015श्री शीतलनाथ जी जन्म-तप
18 जनवरी 2015मेला केशरिया जी
19 जनवरी 2015श्री ऋषभदेवजी मोक्ष
19 जनवरी 2015लब्धि विधान व्रत
20 जनवरी 2015श्री श्रेयान्सनाथ जी ज्ञान
22 जनवरी 2015श्री वासुपूज्य ज्ञान
23 जनवरी 2015श्री विमल नाथ जी जप-तप
24 जनवरी 2015दस लक्षण व्रत
24 जनवरी 2015पुष्पांजलि व्रत
24 जनवरी 2015वार्षिक उत्सव: निर्वाण विहार दिल्ली
25 जनवरी 2015श्री विमलनाथजी ज्ञान
29 जनवरी 2015श्री अजितनाथजी जन्म-तप
30 जनवरी 2015रोहिणी व्रत
31 जनवरी 2015श्री अभिनंदननाथजी जन्म-तप

जैन पर्व (Jainism Festival)


पंचकल्याणक (Panchkalyanak)

Panchkalyanak

पंचकल्याणक पर्व महावीर स्वामी को समर्पित जैन पर्व है। जैन मतानुसार यह पर्व आत्मा से 
परमात्मा बनने की प्रक्रिया का पर्व है। इस पर्व में अगर कोई जातक प्रत्यक्षदर्शी ना भी हो पाए तो 
मात्र इस पर्व की कल्पना कर भी वह विशेष फल का पात्र बन सकता है। 
पर्व के प्रकार
जैनियों का विश्वास है कि तीर्थंकरों के प्रभाव से मनुष्य का जीवन अर्थपूर्ण और सत्य के अधिक 
निकट हो जाता है। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य भी लोगों तक जैन तींर्थंकरों के संदेश को पहुंचाना है।
पंचकल्याणक पर्व में मुख्य मान्यताएँ 
पंचकल्याणक पर्व में गर्भ कल्याणक समेत अन्य संस्कारों की चर्चा की जाती है। यह संस्कार निम्न 
हैं
गर्भ कल्याणक
जन्म कल्याणक
ताप व दीक्षा कल्याणक
मोक्ष कल्याणक

दीपमलिका पर्व (Deepmalika Parv)

Deepmalika Parv
दीपमलिका जैन धर्म का महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक पर्व है। यह पर्व जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर प्रभु ‘महावीर’ निर्वाण महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी का कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को अवसान और अमावस के प्रात:काल निर्वाण हुआ था। 
दीपमलिका पर्व 2015 
साल 2015 में दीपमलिका पर्व या महावीर निर्वाण उत्सव 11 नवंबर को मनाया जाएगा।
जिनालय में निर्वाण उत्सव 
दीपमलिका पर्व के दिन श्रद्धालु सामयिक जाप करते हैं। मान्यता है कि इस शुद्ध वस्त्र धारण कर लड्डू और अष्ट द्रव्य द्वारा अभिषेक और नित्य पूजन के उपरांत भगवान महावीर सफल निर्वाण का पूजन करना चाहिए। इस दिन मंदिर में जाकर सामूहिक पूजा और निर्वाण लड्डू चढ़ाना समाज और देश के लिए शुभ माना जाता है। 
दीपमलिका पूजन की विधि (Deepmallika Pujan Vidhi) 
महावीर निर्वाण उत्सव की संध्या को जैन अनुयायी दीपमलिका पर्व मनाते हैं। मतानुसार प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजा करना शुभ होता है। इस साल लक्ष्मी पूजा का शुभ समय सायं 05 बजकर 26 मिनट से लेकर आठ बजकर पांच मिनट तक का है।
इस दिन जैन अनुयायियों को गौतम स्वामी और माता लक्ष्मी-कुबेरादि की पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि इस दिन शुभ काल में लक्ष्मी जी पूजा करने लाभोन्नति, सौभाग्य, समृद्धि आदि की प्राप्ति होती है।

   दशलक्षण पर्व (Dashlakshan Parv)

Dashlakshan Parv
दशलक्षण पर्व, जैन धर्म का प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण पर्व है। 'पर्यूषण' पर्व के अंतिम दिन से आरम्भ 
होने वाला दशलक्षण पर्व संयम और आत्मशुद्धि का संदेश देता हैं। दशलक्षण पर्व साल में तीन बार 
मनाया जाता है लेकिन मुख्य रूप से यह पर्व भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से लेकर चतुर्दशी तक मनाया 
जाता है।
दशलक्षण पर्व 2015
साल 2015 में दशलक्षण पर्व की तिथियां निम्न हैं
24 जनवरी से 2 फरवरी
24 मार्च से 3 अप्रैल
18 सितंबर से 27 सितंबर
दशलक्षण पर्व मुख्य लक्षण
दशलक्षण पर्व में जैन धर्म के जातक अपने मुख्य दस लक्षणों को जागृत करने की कोशिश करते हैं।
जैन धर्मानुसार दस लक्षणों का पालन करने से मनुष्य को इस संसार से मुक्ति मिल सकती है, 
जो निम्न हैं:
1. क्षमा
2. विनम्रता
3. माया का विनाश
4. निर्मलता
5. सत्य
6. संयम
7. तप
8. त्याग
9. परिग्रह का निवारण
10. ब्रह्मचर्य
जैन धर्मानुसार लक्षणों का पालन करने के लिए, साल में तीन बार दसलक्षण पर्व श्रद्धा भाव से निम्न
तिथियों व माह में मनाया जाता है।
1. चैत्र शुक्ल 5 से 14 तक
2. भाद्रपद शुक्ल 5 से 14 तक और
3. माघ शुक्ल 5 से 14 तक।
भाद्र महीने में आने वाले दशलक्षण पर्व को लोगों द्वारा ज्यादा धूमधाम से मनाया जाता है। इन 
दिनों में श्रद्धालु अपनी क्षमता अनुसार व्रत-उपवास कर अत्याधिक समय भगवान की पूजा अर्चना में
व्यतीत किया जाता है। 
दशलक्षण पर्व की शिक्षा 
दशलक्षण पर्व ही महत्ता के कारण दशलक्षण पर्व को 'राजा' भी कहा जाता है, जो समाज को 'जिओ 
और जीने दो' का सन्देश देता है।
दशलक्षण पर्व व्रत 
संयम और आत्मशुद्धि के इस पवित्र त्यौहार पर श्रद्धालु श्रद्धापूर्वक व्रत-उपवास रखते हैं। मंदिरों को 
भव्यतापूर्वक सजाते हैं, तथा भगवान महावीर का अभिषेक कर विशाल शोभा यात्राएं निकाली जाती है।

रक्षाबंधन (Rakshabandhan)

Rakshabandhan
ऋषि-मुनियों की रक्षा से जुड़ा रक्षाबंधन पर्व जैन धर्मावलम्बियों का एक प्रमुख पर्व है. जैन धर्म के 
अनुयायी इस पर्व को अत्यंत आस्था और उत्साह के साथ मनाते हैं. इस पर्व के दिन जैन धर्मावलम्बी
जिन मंदिरों में जाकर मुनि विष्णु कुमार तथा सात सौ मुनियों की पूजा करके उनका पाठ करते हैं, 
फिर परस्पर रक्षा का संकल्प लेते हुए एक दूसरे को राखी बांधते हैं. जैन पुराणों में वर्णित कथाओं 
के अनुसार एक समय में उज्जयिनी नगरी में श्री धर्म नामक राजा राज्य करता था.उसके चार मंत्री
थे, जिनका नाम बलि, बृहस्पति, नमुचि, और प्रह्लाद था. एक बार मुनि अकंपनाचार्य सहित सात 
सौ मुनियों को अपमानित करने के कारण राजा ने इन चारों को राज्य से निकाल दिया. कुछ समय 
पश्चात मुनि अकंपनाचार्य साधना करने के लिए अपने सात सौ मुनियों के साथ हस्तिनापुर पहुंचे. 
तब बलि ने वरदान स्वरुप हस्तिनापुर के राजा पद्म से 7 दिन के लिए राज्य मांग लिया. फिर जहाँ
अकंपनाचार्य अपने मुनियों के साथ साधना कर रहे थे, उसके चारों ओर पुरूषमेघ यज्ञ के नाम पर 
एक ज्वलनशील बाडा खड़ा किया और उसमें आग लगवा दी. जिससे साधना में लीन मुनियों को 
अत्यधिक कष्ट हो रहा था. तब मुनिराज विष्णुकुमार ने मुनि अवस्था छोड़कर वामन रूप धारण 
किया और बलि से भिक्षा स्वरुप तीन पग भूमि मांग ली और फिर तीन पग में ही सारा संसार 
नापकर उन मुनियों की रक्षा की और बलि को देश निकला की सजा दी. इसलिए जैन धर्मावलम्बी 
इस पर्व को मुनियों सहित एक दूसरे की रक्षा हेतु मनाते हैं.
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महावीर जयंती (Mahavir Jayanti)

Mahavir Jayanti
भगवान महावीर जयंती 2015: 2 अप्रैल
मानव समाज को अन्धकार से प्रकाश की ओर लाने वाले महापुरुष भगवान महावीर का जन्म ईसा
से 599 वर्ष पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि को बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज 
श्री सिद्धार्थ और माता त्रिशिला देवी के यहां हुआ था। जिस कारण इस दिन जैन श्रद्धालु इस पावन 
दिवस को महावीर जयन्ती के रूप में परंपरागत तरीके से हर्षोल्लास और श्रद्धाभक्ति पूर्वक मनाते हैं।
साल 2015 में महावीर जयंती 020 अप्रैल को मनाई जाएगी।
भगवान महावीर का जीवन : बचपन में भगवान महावीर का नाम वर्धमान था। जैन धर्मियों का 
मानना है कि वर्धमान ने कठोर तप द्वारा अपनी समस्त इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर जिन अर्थात
विजेता कहलाए। उनका यह कठिन तप पराक्रम के सामान माना गया, जिस कारण उनको महावीर 
कहा गया और उनके अनुयायी जैन कहलाए।
महावीर जयंती (Mahavir Jayanti Details in Hindi): तप से जीवन पर विजय प्राप्त करने का 
पर्व महावीर जयंती पर श्रद्धालु जैन मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्ति को विशेष स्नान कराते हैं,
जो कि अभिषेक कहलाता है। तदुपरांत, भगवान की मूर्ति को सिंहासन या रथ पर बिठाकर उत्साह 
और हर्सोल्लास पूर्वक जुलूस निकालते हैं, जिसमें बड़ी संख्यां में जैन धर्मावलम्बी शामिल होते हैं।
इस सुअवसर पर जैन श्रद्धालु भगवान को फल, चावल, जल, सुगन्धित द्रव्य आदि वस्तुएं अर्पित 
करते हैं।

श्रुतपंचमी पर्व (Shrutpanchami Parv)

Shrutpanchami Parv
जैन धर्म को मानने वाले श्रद्धालु प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पंचमी तिथि को श्रुतपंचमी का पर्व मनाते हैं. 
जैन धर्मी ऐसा विश्वास करते हैं कि आचार्य श्री धरसेन जी महाराज की प्रेरणा से मुनि श्री पुष्पदंत जी महाराज 
एवं मुनि श्री भूतबली जी महाराज आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व गुजरात में गिरनार पर्वत की गुफाओं में ज्येष्ठ
शुक्ल पंचमी के दिन ही जैन धर्म के प्रथम ग्रन्थ श्री षटखंडागम की रचना पूर्ण किया था और इसीलिए वे इस 
एतिहासिक तिथि को श्रुतपंचमी पर्व के रूप में मनाते हैं. ज्ञान की आराधना का यह महान पर्व मानव समाज को
वीतरागी संतों की वाणी, आराधना और प्रभावना का सन्देश देता है. इस पावन दिवस पर श्रद्धालुओं को श्री धवल,
महाधवलादि ग्रंथों को विराजमान कर श्रद्धाभक्ति से महोत्सव के साथ उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए और 
सिद्धभक्ति का पाठ करना चाहिए. अज्ञानता के अन्धकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फ़ैलाने वाले इस महापर्व 
के सुअवसर पर हमें पुराने ग्रंथों, शास्त्रों और सभी किताबों की देखभाल करनी चाहिए, उनमें जिल्द लगवानी चाहिए
,शास्त्रों और ग्रंथों के भण्डार की सफाई आदि करके शास्त्रों की पूजा विनय आदि करनी चाहिए.
इस पावन पर्व के सुअवसर पर जैन धर्मावलम्बी बैंडबाजों के साथ शास्त्रों और ग्रंथों की शोभायात्रा निकालते हैं. 
इस दौरान शोभायात्रा का स्वागत भक्तजन पुष्पवर्षा करके करते हैं. इस यात्रा में बड़ी संख्यां में जैन धर्म के प्रति 
श्रद्धा रखनेवाले शामिल होते हैं.