रक्षाबंधन (Rakshabandhan)
ऋषि-मुनियों की रक्षा से जुड़ा रक्षाबंधन पर्व जैन धर्मावलम्बियों का एक प्रमुख पर्व है. जैन धर्म के
अनुयायी इस पर्व को अत्यंत आस्था और उत्साह के साथ मनाते हैं. इस पर्व के दिन जैन धर्मावलम्बी
जिन मंदिरों में जाकर मुनि विष्णु कुमार तथा सात सौ मुनियों की पूजा करके उनका पाठ करते हैं,
फिर परस्पर रक्षा का संकल्प लेते हुए एक दूसरे को राखी बांधते हैं. जैन पुराणों में वर्णित कथाओं
के अनुसार एक समय में उज्जयिनी नगरी में श्री धर्म नामक राजा राज्य करता था.उसके चार मंत्री
थे, जिनका नाम बलि, बृहस्पति, नमुचि, और प्रह्लाद था. एक बार मुनि अकंपनाचार्य सहित सात
सौ मुनियों को अपमानित करने के कारण राजा ने इन चारों को राज्य से निकाल दिया. कुछ समय
पश्चात मुनि अकंपनाचार्य साधना करने के लिए अपने सात सौ मुनियों के साथ हस्तिनापुर पहुंचे.
तब बलि ने वरदान स्वरुप हस्तिनापुर के राजा पद्म से 7 दिन के लिए राज्य मांग लिया. फिर जहाँ
अकंपनाचार्य अपने मुनियों के साथ साधना कर रहे थे, उसके चारों ओर पुरूषमेघ यज्ञ के नाम पर
एक ज्वलनशील बाडा खड़ा किया और उसमें आग लगवा दी. जिससे साधना में लीन मुनियों को
अत्यधिक कष्ट हो रहा था. तब मुनिराज विष्णुकुमार ने मुनि अवस्था छोड़कर वामन रूप धारण
किया और बलि से भिक्षा स्वरुप तीन पग भूमि मांग ली और फिर तीन पग में ही सारा संसार
नापकर उन मुनियों की रक्षा की और बलि को देश निकला की सजा दी. इसलिए जैन धर्मावलम्बी
इस पर्व को मुनियों सहित एक दूसरे की रक्षा हेतु मनाते हैं.
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