Monday 20 April 2015

सोमवती अमावस्या


किसी भी महीने की अमावस्या जब सोमवार को होती है. तो उसे सोमवती अमावस्या कहते है. सोमवती अमावस्या पितरों के तर्पण कार्यो के लिये सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है. इस व्रत को करने के लिये इस दिन उपवासक को पीपल के पेड के नीचे शनि देव के बीज मंत्र का जाप करना विशेष रुप से कल्याण करने वाला कहा जाता है. वर्ष 2011 में पूरे वर्ष में केवल एक सोमवती अमावस्या आ रही है. यह अमावस्या भाद्रपद माह 29 अगस्त की रहेगी. 
सोमवती अमावस्या के दिन स्नान, दान करने का विशेष महत्व कहा गया है. सोमवती अमावस्या के दिन मौन रहने का सर्वश्रेष्ठ फल कहा गया है. देव ऋषि व्यास के अनुसार इस तिथि में मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्त्र गौ दान के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. 
इस के अतिरिक्त इस दिन पीपल की 108 परिक्रमा कर, पीपल के पेड और श्री विष्णु का पूजन करने का नियम है.  मुख्य रुप से इस सोमवती अमावस्या के व्रत को स्त्रियों के द्वारा किया जाता है. व्रत करने के बाद और पीपल की प्रदक्षिणा करने बाद अपने सामर्थ्य अनुसार दान-दक्षिणा देना शुभ होता है. 29 अगस्त की सोमवती अमावस्या पर हजारों की संख्या में हरिद्वार तीर्थ स्थल पर डूबकी लगाई जाने की संभावनाएं बन रही है. 
इस दिन कुरुक्षेत्र के ब्रह्मा सरोवर में डूबकी लगाने का भी बहुत अधिक पुन्य फल कहा गया है. इस स्थान पर सोमवती अमावस्या के दिन स्नान और दन करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है.  सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक की अवधि में पवित्र नदियों पर स्नान करने वालों का तांता सा लगा रहेगा. स्नान के साथ भक्तजन भाल पर तिलक लगवाते है. और पवित्र श्लोकों की गुंज चारों ओर सुनाई देती है. यह सब कार्य करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है.
सोमवती अमावस्या का व्रत करने वाली स्त्रियों को व्रत की कथा अवश्य सुननी चाहिए.  व्रत की कथा इस प्रकार है.    

सोमवती अमावस्या व्रत कथा | Somvati Amavasya Vrat Katha

एक साहूकार के सात लडके और एक लडकी थी. उसने सभी लडकों का विवाह कर दिया था. परन्तु लडकी का अभी विवाह नहीं हुआ था. साहूकार के घर एक साधु प्रतिदिन भिक्षा मांगने आता था. और बदले में आशिर्वाद देकर जाता था. वह साधु जो आशिर्वाद बहुओं को देता था. और जो आशिर्वाद वह साहूकार की बेटी को देता था. उन दोनों में अंतर होता था, बहुओं को वह सुहाग का आशिर्वाद देता था, और बेटी को भाईयों से सुख की बात करता था.  
एक दिन बेटी ने यह बात अपनी माता से कहीं, मां भी इस बात को जानकार दु:खी हुई. दूसरे दिन उसकी माता ने साधु से पूछा की वे उसकी बेटी को ऎसा आशिर्वाद क्यों देते है. साधु ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया और वे चले गयें.  यह देख कर माता की चिन्ता और बढ गई.   
माता ने तुरन्त पण्डित जी को बुलाया और उन्हें अपनी बेटी कि जन्मपत्रिका देखने के लिये कहा. पंण्डित जी ने जन्म पत्रिका देख कर कहा कि उनकी बेटी के भाग्य में विधवा होना लिखा है. यह बात सुनकार माता को और भी दु:ख हुआ, पण्डित जी से उपाय जानने के बाद यह निश्चित हुआ कि सात समुद्र पार एक धोबन के पास जाकर उसकी मांग का सिन्दूर मांगकर अपनी मांग में लगाने से और सोमवती अमावस्या के व्रत करने से यह अशुभ योग भंग हो जायेगा. 
यह सुनकर माता ने अपने पुत्रों से उसकी बेटी के साथ जाने का आग्रह किया, छोटे पुत्र के अलावा अन्य सभी पुत्रों ने साथ जाने के लिये मना कर दिया. दोनों भाई बहन धोबिन से कहानी सुनने के लिये चल दिये. चलते-चलते दोनों समुद्र किनारे आ गयें. और समुद्र कैसे पार किया जायें, इसका विचार करने लगें. विचार करने के लिये दोनों जिस पेड के नीचे बैठे थे, उस पेड पर एक गिद्ध और गिद्धनी रहती थी. 
जब भी गिद्वनी के बच्चे होते थें, एक सांप आकर उनके बच्चों को खा जाता था. उस दिन भी ऎसा ही हुआ, गिद्ध-गिद्वनी दोनों बाहर गये हुए थें, कि सांप आया और गिद्धनी के बच्चे चिल्लाने लगें. साहूकार की बेटी समझ गई, उसने साह्से से सांप को मार दिया. सांयकाल में जब गिद्ध और गिद्धनी वापस आयें, तो उन्होने ने अपने बच्चों को जीवित देख कर खुशी हुई, दोनों ने लडकी को धोबिन के घर ले जाने में सहायता की. लडकी, कई माह तक छुपकर धोबिन की सेवा करती रही. उसकी सेवा से प्रसन्न होकर धोबिन ने अपनी मांग का सिन्दूर उसकी मांग में लगा दिया. इसके बाद व निरजल ही अपने घर की ओर चल दी. रास्ते में पीपल के पेड की परिक्रमा की, और उसके बद जल ग्रहण किया. पीपल के पेड का पूजन करने और सोमवती अमावस्या का व्रत करने से उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई.   

No comments:

Post a Comment