रविवार व्रत विधि (Ravivar Vrat Vidhi)
रविवार के दिन व्रत करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं और जातक को सर्व-सुख-संपन्न बनाते
हैं। मान्यता है कि संक्रांति या हस्त नक्षत्रयुक्त रविवार से एक वर्ष तक हर रविवार व्रत
करनेसे मनुष्य सब कुछ पा लेता है। इस दिन प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर
पूजा स्थानलीप कर सूर्यदेव की पूजा करनी चाहिए और कथा सुननी चाहिए। व्रत के दिन
भोजन सूर्यास्त से पहले कर लेना चाहिए। यदि भोजन करने से पहले ही सूर्य अस्त हो
जाए तो अगले दिन सूर्योदय के बाद
हैं। मान्यता है कि संक्रांति या हस्त नक्षत्रयुक्त रविवार से एक वर्ष तक हर रविवार व्रत
करनेसे मनुष्य सब कुछ पा लेता है। इस दिन प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होकर
पूजा स्थानलीप कर सूर्यदेव की पूजा करनी चाहिए और कथा सुननी चाहिए। व्रत के दिन
भोजन सूर्यास्त से पहले कर लेना चाहिए। यदि भोजन करने से पहले ही सूर्य अस्त हो
जाए तो अगले दिन सूर्योदय के बाद
सूर्यदेव को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए।
रविवार व्रत कथा (Ravivar Vrat Katha)
सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले और जीवन में सुख-समृद्धि लाने वाले रविवार व्रत
की कथा इस प्रकार से है- प्राचीन काल में किसी नगर में एक बुढ़िया रहती थी। वह
प्रत्येक रविवार को सुबह उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीप
कर स्वच्छ करती थी। उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद भोजन तैयार
कर भगवान को भोग लगाकर ही स्वयं भोजन करती थी। भगवान सूर्यदेव की कृपा
से उसे किसी प्रकार की चिन्ता व कष्ट नहीं था। धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से
भर रहा था।उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी।
बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी। अतः रविवार के दिन घर लीपने के लिए वह
अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी। पड़ोसन ने कुछ सोचकर
अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया। रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना
आंगन नहीं लीप सकी। आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को
भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया। सूर्यास्त होने पर बुढ़िया
भूखी-प्यासी सो गई। इस प्रकार उसने निराहर व्रत किया। रात्रि में सूर्य भगवान ने उसे
स्वप्न में दर्शन दिए और व्रत न करने तथा उन्हें भोग न लगाने का कारण पूछा। बुढ़िया
ने बहुत ही करुण स्वर में पड़ोसन के द्वारा घर के अन्दर गाय बांधने और गोबर न मिल
पाने की बात कही। सूर्य भगवान ने अपनी भक्त की परेशानी का कारण जानकर उसके सब
दुःख दूर करते हुए कहा- हे माता, हम तुमको एक ऐसी गाय देते हैं जो सभी इच्छाएं पूर्ण
करती है। क्यूंकि तुम हमेशा रविवार को पूरा घर गाय के गोबर से लीपकर भोजन बनाकर
मेरा भोग लगाकर ही स्वयं भोजन करती हो, इससे मैं बहुत प्रसन्न हूं। मेरा व्रत करने व
कथा सुनने से निर्धन को धन और बांझ स्त्रियों को पुत्र की प्राप्ति होती है। स्वप्न में उस
की कथा इस प्रकार से है- प्राचीन काल में किसी नगर में एक बुढ़िया रहती थी। वह
प्रत्येक रविवार को सुबह उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीप
कर स्वच्छ करती थी। उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद भोजन तैयार
कर भगवान को भोग लगाकर ही स्वयं भोजन करती थी। भगवान सूर्यदेव की कृपा
से उसे किसी प्रकार की चिन्ता व कष्ट नहीं था। धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से
भर रहा था।उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी।
बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी। अतः रविवार के दिन घर लीपने के लिए वह
अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी। पड़ोसन ने कुछ सोचकर
अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया। रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना
आंगन नहीं लीप सकी। आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को
भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया। सूर्यास्त होने पर बुढ़िया
भूखी-प्यासी सो गई। इस प्रकार उसने निराहर व्रत किया। रात्रि में सूर्य भगवान ने उसे
स्वप्न में दर्शन दिए और व्रत न करने तथा उन्हें भोग न लगाने का कारण पूछा। बुढ़िया
ने बहुत ही करुण स्वर में पड़ोसन के द्वारा घर के अन्दर गाय बांधने और गोबर न मिल
पाने की बात कही। सूर्य भगवान ने अपनी भक्त की परेशानी का कारण जानकर उसके सब
दुःख दूर करते हुए कहा- हे माता, हम तुमको एक ऐसी गाय देते हैं जो सभी इच्छाएं पूर्ण
करती है। क्यूंकि तुम हमेशा रविवार को पूरा घर गाय के गोबर से लीपकर भोजन बनाकर
मेरा भोग लगाकर ही स्वयं भोजन करती हो, इससे मैं बहुत प्रसन्न हूं। मेरा व्रत करने व
कथा सुनने से निर्धन को धन और बांझ स्त्रियों को पुत्र की प्राप्ति होती है। स्वप्न में उस
बुढ़िया को ऐसा वरदान देकर भगवान सूर्य अंतर्ध्यान हो गए। प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उस
बुढ़ियाकी आंख खुली तो वह अपने घर के आंगन में सुन्दर गाय और बछड़े को देखकर
हैरानहो गई। गाय को आंगन में बांधकर उसने जल्दी से उसे चारा लाकर खिलाया। पड़ोसन
ने उसबुढ़िया के आंगन में बंधी सुन्दर गाय और बछड़े को देखा तो वह उससे और अधिक
जलने लगी। तभी गाय ने सोने का गोबर किया। गोबर को देखते ही पड़ोसन की आंखें फट
गईं। पड़ोसन नेउस बुढ़िया को आसपास न पाकर तुरन्त उस गोबर को उठाया और अपने
घर ले गई तथा अपनी गाय का गोबर वहां रख आई। सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही
दिनों में धनवान हो गई। गाय प्रति दिन सूर्योदय से पूर्व सोने का गोबर किया करती थी
और बुढ़िया केउठने के पहले पड़ोसन उस गोबर को उठाक ले जाती थी। बहुत दिनों तक
बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता ही नहीं चला। बुढ़िया पहले की तरह हर
रविवार को भगवान सूर्यदेव का व्रत करती रही और कथा सुनती रही। लेकिन सूर्य भगवान
को जब पड़ोसन की चालाकी का पता चला तो उन्होंने तेज आंधी चलाई। आंधी का प्रकोप
देखकर बुढ़िया ने गायको घर के भीतरबांध दिया। सुबह उठकर बुढ़िय ने सोने का गोबर
देखा उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उस दिन के बादबुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी।
सोने के गोबर से बुढ़िया कुछ ही में बहुत धनी हो गई।उस बुढ़िया के धनी होने से पड़ोसन
बुरी तरह जल-भुनकर राख हो गई। जब उसे सोने का गोबर पाने का कोई रास्ता नहीं
सूझा तो वह राजा के दरबार में पहुंची और राजा को सारी बात बताई। राजा को जब बुढ़िया
के पास सोनेके गोबर देने वाली गाय के बारे में पता चला तो उसने अपनेसैनिक भेजकर
बुढ़िया की गाय लाने का आदेश दिया। सैनिक उस बुढ़िया के घर पहुंचे। उस समय बुढ़िया
सूर्य भगवान को भोग लगाकरस्वयं भोजन ग्रहण करने वाली थी। राजा के सैनिकों ने गाय
खोला और अपने साथ महल की ओर ले चले। बुढ़िया ने सैनिकों से गाय को न ले जाने की
प्रार्थना की, बहुत रोई-चिल्लाईलेकिन राजा के सैनिक नहीं माने। गाय के चले जाने से
बुढ़ियाको बहुत दुःख हुआ। उस दिन उसने कुछ नहीं खाया और सारी रात सूर्य भगवान
से गाय कोपुन: प्राप्त करने हेतु प्रार्थना करने लगी। दूसरी ओर राजा गाय को देखकर राजा
बहुत खुश हुआ। लेकिन अगले दिन सुबह जैसे ही वह उठा सारा महल गोबर से भरा देखकर
घबरा गया। उसी रात भगवान सूर्य उसके सपने में आए और बोले- हे राजन। यह गाय वृद्धा
को लौटाने में ही तुम्हारा भला है। रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर ही उसे यह गाय मैंने दी
है।
बुढ़ियाकी आंख खुली तो वह अपने घर के आंगन में सुन्दर गाय और बछड़े को देखकर
हैरानहो गई। गाय को आंगन में बांधकर उसने जल्दी से उसे चारा लाकर खिलाया। पड़ोसन
ने उसबुढ़िया के आंगन में बंधी सुन्दर गाय और बछड़े को देखा तो वह उससे और अधिक
जलने लगी। तभी गाय ने सोने का गोबर किया। गोबर को देखते ही पड़ोसन की आंखें फट
गईं। पड़ोसन नेउस बुढ़िया को आसपास न पाकर तुरन्त उस गोबर को उठाया और अपने
घर ले गई तथा अपनी गाय का गोबर वहां रख आई। सोने के गोबर से पड़ोसन कुछ ही
दिनों में धनवान हो गई। गाय प्रति दिन सूर्योदय से पूर्व सोने का गोबर किया करती थी
और बुढ़िया केउठने के पहले पड़ोसन उस गोबर को उठाक ले जाती थी। बहुत दिनों तक
बुढ़िया को सोने के गोबर के बारे में कुछ पता ही नहीं चला। बुढ़िया पहले की तरह हर
रविवार को भगवान सूर्यदेव का व्रत करती रही और कथा सुनती रही। लेकिन सूर्य भगवान
को जब पड़ोसन की चालाकी का पता चला तो उन्होंने तेज आंधी चलाई। आंधी का प्रकोप
देखकर बुढ़िया ने गायको घर के भीतरबांध दिया। सुबह उठकर बुढ़िय ने सोने का गोबर
देखा उसे बहुत आश्चर्य हुआ। उस दिन के बादबुढ़िया गाय को घर के भीतर बांधने लगी।
सोने के गोबर से बुढ़िया कुछ ही में बहुत धनी हो गई।उस बुढ़िया के धनी होने से पड़ोसन
बुरी तरह जल-भुनकर राख हो गई। जब उसे सोने का गोबर पाने का कोई रास्ता नहीं
सूझा तो वह राजा के दरबार में पहुंची और राजा को सारी बात बताई। राजा को जब बुढ़िया
के पास सोनेके गोबर देने वाली गाय के बारे में पता चला तो उसने अपनेसैनिक भेजकर
बुढ़िया की गाय लाने का आदेश दिया। सैनिक उस बुढ़िया के घर पहुंचे। उस समय बुढ़िया
सूर्य भगवान को भोग लगाकरस्वयं भोजन ग्रहण करने वाली थी। राजा के सैनिकों ने गाय
खोला और अपने साथ महल की ओर ले चले। बुढ़िया ने सैनिकों से गाय को न ले जाने की
प्रार्थना की, बहुत रोई-चिल्लाईलेकिन राजा के सैनिक नहीं माने। गाय के चले जाने से
बुढ़ियाको बहुत दुःख हुआ। उस दिन उसने कुछ नहीं खाया और सारी रात सूर्य भगवान
से गाय कोपुन: प्राप्त करने हेतु प्रार्थना करने लगी। दूसरी ओर राजा गाय को देखकर राजा
बहुत खुश हुआ। लेकिन अगले दिन सुबह जैसे ही वह उठा सारा महल गोबर से भरा देखकर
घबरा गया। उसी रात भगवान सूर्य उसके सपने में आए और बोले- हे राजन। यह गाय वृद्धा
को लौटाने में ही तुम्हारा भला है। रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर ही उसे यह गाय मैंने दी
है।
सुबह होते ही राजा ने वृद्धा को महल में बुलाकर बहुत-से धन के साथ सम्मान सहित गाय
लौटादी और क्षमा मांगी। इसके बाद राजा ने पड़ोसन को दण्ड दिया। इतना करने के बाद
राजा के महल से गंदगी दूर हो गई। उसी दिन राज्य में घोषणा कराई कि सभी स्त्री-पुरुष
रविवार का व्रत किया करें। रविवार का व्रत करने से सभी लोगों के घर धन-धान्य से भर
गए। चारों ओर खुशहाली छा गई।
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