Thursday 16 April 2015

करवा चौथ (Karva Chauth)


भारतीय संस्कृति में पति को परमेश्वर माना गया है। पति की लम्बी उम्र और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस शुभ दिवस पर विवाहित और सौभाग्यवती स्त्रियां अपने अटल सुहाग, पति की दीर्घ आयु और दांपत्य जीवन में मंगल कामना के लिए व्रत रखती है। इस दिन महिलाएं बिना पानी तक पिए दिनभर उपवास रखती हैं और शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देती है और फिर उसे छलनी से देखती है। उसके बाद वे अपने पति के हाथ से पानी ग्रहण कर इस उपवास को पूर्ण करती है। 
कैसे करें करवा चौथ का व्रत (Karva Chauth Vrat Vidhi in Hindi): नारद पूराण के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत पर केवल महिलाओं का अधिकार बताया गया है। इस व्रत को सोलह या बारह वर्षों तक कर उद्यापन कर देना चाहिए। जानिए कैसे करें करवा चौथ व्रत: 
करवा चौथ व्रत विधि (Karwa Chauth Vrat Vidhi in Hindi) 

करवा चौथ व्रत कथा (Story of Karwa Chauth in Hindi): यूं तो इस व्रत से सम्बंधित कई कथाएं प्रचलित हैं 

शरद पूर्णिमा (Sharad Poornima)



हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। साल 2015 में शरद पूर्णिमा 26 अक्टूबर को मनाई जाएगी। 
शरद पूर्णिमा व्रत विधि (Sharad Purnima Vrat Vidhi): इस पर्व को "कोजागरी पूर्णिमा" के नाम से भी जाना जाता है। नारद पूराण के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी अपने हाथों में वर और अभय लिए घूमती हैं। और जागते हुए भक्तों को धन-वैभव का आशीष देती हैं। 
इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। शाम के समय चन्द्रोदय होने पर चांदी, सोने या मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए। इस दिन घी और चीनी से बनी खीर चन्द्रमा की चांदनी में रखनी चाहिए। जब रात्रि का एक पहर बीत जाए तो यह भोग लक्ष्मी जी को अर्पित कर देना चाहिए। 

शरद पूर्णिमा व्रत कथा (Sharad Purnima Vrat Katha): शरद पूर्णिमा के सम्बन्ध में एक दंतकथा अत्यंत प्रचलित है। कथानुसार एक साहूकार की दो बेटियां थी और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थी| बड़ी बेटी ने विधिपूर्वक व्रत को पूर्ण किया और छोटी ने व्रत को अधूरा ही छोड़ दिया। फलस्वरूप छोटी लड़की के बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। एक बार बड़ी लड़की के पुण्य स्पर्श से उसका बालक जीवित हो गया और उसी दिन से यह व्रत विधिपूर्वक पूर्ण रूप से मनाया जाने लगा। इस दिन माता महालक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।


गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi)



हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल चतुर्थी को हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार गणेश चतुर्थी मनाया जाता है. गणेश पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी दिन समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करनेवाले, कृपा के सागर तथा भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश जी का आविर्भाव हुआ था. भगवान विनायक के जन्मदिवस पर मनाया जानेवाला यह महापर्व महाराष्ट्र सहित भारत के सभी राज्यों में हर्सोल्लास पूर्वक और भव्य तरीके से आयोजित किया जाता है. इस महापर्व पर लोग प्रातः काल उठकर सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी के गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर षोडशोपचार विधि से उनका पूजन करते हैं. पूजन के पश्चात् नीची नज़र से चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को दक्षिणा देते हैं. इस पूजा में गणपति को 21 लड्डुओं का भोग लगाने का विधान है.
कथानुसार एक बार मां पार्वती स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसका नाम गणेश रखा. फिर उसे अपना द्वारपाल बना कर दरवाजे पर पहरा देने का आदेश देकर स्नान करने चली गई. थोड़ी देर बाद भगवान शिव आए और द्वार के अन्दर प्रवेश करना चाहा तो गणेश ने उन्हें अन्दर जाने से रोक दिया. इसपर भगवान शिव क्रोधित हो गए और अपने त्रिशूल से गणेश के सिर को काट दिया और द्वार के अन्दर चले गए. जब मां पार्वती ने पुत्र गणेश जी का कटा हुआ सिर देखा तो अत्यंत क्रोधित हो गई. तब ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देवताओं ने उनकी स्तुति कर उनको शांत किया और भोलेनाथ से बालक गणेश को जिंदा करने का अनुरोध किया. महामृत्युंजय रूद्र उनके अनुरोध को स्वीकारते हुए एक गज के कटे हुए मस्तक को श्री गणेश के धड़ से जोड़ कर उन्हें पुनर्जीवित कर दिया.

पोंगल (Pongal)


किसानों का त्यौहार पोंगल मुख्य रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है। चार दिनों तक मनाया जानेवाला यह त्यौहार कृषि एवं फसल से संबंधित देवता को समर्पित है। पारंपरिक रूप से संपन्नता को समर्पित इस त्यौहार के दिन भगवान सूर्यदेव को जो प्रसाद भोग लगाया जाता है उसे पोगल कहा जाता है, जिस कारण इस त्यौहार का नाम पोंगल पड़ा। 
पोंगल 2015 (Pongal 2015): इस वर्ष पोंगल 15 जनवरी 2015 को मनाया जाएगा। 
पोंगल त्यौहार मुख्यतः चार तरह का होता है:
* भोगी पोंगल
* सूर्य पोंगल
* मट्टू पोंगल
* कन्या पोंगल 
पोंगल पर्व मुख्यत चार दिन मनाया जाता है। यह चार पोंगल क्रमशः क्रमबद्ध रूप से मनाए जाते हैं। इस पर्व में पहले दिन भगवान इन्द्र की पूजा होती है और नाच-गान होता है। दूसरे दिन चावल उबाला जाता है और सूर्य भगवान की पूजा होती है। तीसरे दिन पशुओं का पूजन कर उनका आरती उतारी जाती है। चौथे दिन मुख्य त्यौहार मनया जाता है और भाइयों के लिए पूजा की जाती है।
पोंगल के मुख्य आकर्षण (Main Attraction of Pongal): पोंगल दक्षिण भारत में बहुत ही जोर शोर से मनाया जाता है। इस दिन बैलों की लड़ाई होती है जो कि काफी प्रसिद्ध है। रात्रि के समय लोग सामूहिक भोज का आयोजन करते हैं और एक दूसरे को मंगलमय वर्ष की शुभकामनाएं देते हैं। इस पवित्र अवसर पर लोग फसल, जीवन में प्रकाश आदि के लिए भगवान सूर्यदेव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

जन्माष्टमी (Janmashtami)


पाप और शोक के दावानल को दग्ध करने हेतु, भारत की इस पावन धरा पर स्वयं भगवान विष्णु अपनी सोलह कलाओं के साथ भगवान श्रीकृष्ण के रूप में भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में अवतरित हुए. भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्य उत्सव के रूप में ही हम इस पावन दिवस को महापर्व जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं. पौराणिक कथानुसार जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ उस समय आकाश में घना अन्धकार छाया हुआ था, घनघोर वर्षा हो रही थी, उनके माता-पिता वसुदेव-देवकी बेड़ियों में बंधे थे, लेकिन प्रभु की कृपा से बेड़ियों के साथ-साथ कारागार के द्वार स्वयं ही खुल गए, पहरेदार गहरी नींद में सो गए और वसुदेव श्रीकृष्ण को उफनती यमुना के पार गोकुल में अपने मित्र नन्दगोप के घर ले गए और नन्द की पत्नी यशोदा के गर्भ से उत्पन्न कन्या को लेकर वापस कारागार आ गए.
नन्दगोपाल के जन्म स्थान मथुरा सहित पुरे भारत वर्ष में यह महापर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. देश के कई भागों में मटकी फोड़ने का कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है, जिसकी सुन्दरता और सौम्यता भक्तों के दिलों में भगवान श्रीकृष्ण की यादों को ताज़ा कर देती है. जन्माष्टमी पर भक्तों को दिन भर उपवास रखना चाहिए और रात्रि के 11 बजे स्नान आदि से पवित्र हो कर घर के एकांत पवित्र कमरे में, पूर्व दिशा की ओर आम लकड़ी के सिंहासन पर, लाल वस्त्र बिछाकर, उसपर राधा-कृष्ण की तस्वीर स्थापित करना चाहिए, इसके बाद शास्त्रानुसार उन्हें विधि पूर्वक नंदलाल की पूजा करना चाहिए. मान्यता है कि इस दिन जो श्रद्धा पूर्वक जन्माष्टमी के महात्म्य को पढ़ता और सुनता है, इस लोक में सारे सुखों को भोगकर वैकुण्ठ धाम को जाता है.

गुरू पूर्णिमा (Guru Poornima)



हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा करने की परंपरा को गुरु पूर्णिमा पर्व के रूप में मनाया जाता है. यह पर्व आत्मस्वरूप का ज्ञान पाने के अपने कर्तव्य की याद दिलाने वाला, मन में दैवी गुणों से विभूषित करनेवाला, सद्गुरु के प्रेम और ज्ञान की गंगा में बारम्बार डूबकी लगाने हेतु प्रोत्साहन देने वाला है. गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि भगवान वेद व्यास ने पंचम वेद महाभारत की रचना इसी पूर्णिमा के दिन की और विश्व के सुप्रसिद्ध आर्य ग्रन्थ ब्रह्मसूत्र का लेखन इसी दिन आरम्भ किया. तब देवताओं ने वेद व्यास जी का पूजन किया और तभी से व्यास पूर्णिमा मनाई जा रही है.
कहा जाता है प्राचीन काल में गुरु शिष्य परम्परा के अनुसार शिक्षा ग्रहण की जाती थी. इस दिन शिष्यगण अपने घर से गुरु आश्रम जाकर गुरु की प्रसन्नता के लिए अन्न, वस्त्र और द्रव्य से उनका पूजन करते थे. उसके उपरान्त ही उन्हें धर्म ग्रन्थ, वेद, शास्त्र तथा अन्य विद्याओं की जानकारी और शिक्षण का प्रशिक्षण मिल पाता था. गुरु को समर्पित इस पर्व से हमें भी शिक्षा लेते हुए हमें उनकी पूजा करनी चाहिए और उनके प्रति ह्रदय से श्रद्धा रखनी चाहिए.

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