ईद-उल-ज़ुहा (बकरीद) (Eid-ul-juha (Bakrid))
ईद-इल-फित्र के दो तीन महीने बाद ईद-उल-ज़ुहा का त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार कुरबानी
का त्यौहार है। इस्लाम धर्म का यह दूसरा प्रमुख त्यौहार है। इसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता
है।
ईद-उल-जुहा 2015 (Eid Ul Zuha 2015)
वर्ष 2015 में ईद-उल-जुहा का त्यौहार 22 सितंबर को मनाया जाएगा।
ईद-उल-ज़ुहा की मान्यता (Importance of Eid Ul Zuha)
ईद-उल-ज़ुहा हज़रत इब्राहिम की कुरबानी की याद के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन हज़रत
ईद-उल-जुहा 2015 (Eid Ul Zuha 2015)
वर्ष 2015 में ईद-उल-जुहा का त्यौहार 22 सितंबर को मनाया जाएगा।
ईद-उल-ज़ुहा की मान्यता (Importance of Eid Ul Zuha)
ईद-उल-ज़ुहा हज़रत इब्राहिम की कुरबानी की याद के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन हज़रत
इब्राहिम अल्लाह के हुक्म पर अल्लाह के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे हज़रत
इस्माइल को कुरबान करने पर राजी हुए थे। इस पर्व का मुख्य लक्ष्य लोगों में जनसेवा और अल्लाह
की सेवा के भाव को जगाना है। ईद-उल-ज़ुहा का यह पर्व इस्लाम के पांचवें सिद्धान्त हज की भी पूर्ति करता है।
ईद-उल-ज़ुहा की कहानी (Story of Eid Ul Zuha)
कुरआन में बताया गया है कि एक दिन अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय
ईद-उल-ज़ुहा की कहानी (Story of Eid Ul Zuha)
कुरआन में बताया गया है कि एक दिन अल्लाह ने हज़रत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय
चीज की कुरबानी मांगी। हज़रत इब्राहिम को सबसे प्रिय अपना बेटा लगता था। उन्होंने अपने बेटे
की कुरबानी देने का निर्णय किया। लेकिन जैसे ही हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे की बलि लेने के
लिए उसकी गर्दन पर वार किया, अल्लाह चाकू की धार से हज़रत इब्राहिम के पुत्र को बचाकर एक
भेड़ की कुर्बानी दिलवा दी। इसी कारण इस पर्व को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है।
ईद-उल-ज़ुहा को कैसे मनाया जाता है?
• ईद-उल-ज़ुहा के दिन मुसलमान किसी जानवर जैसे बकरा, भेड़, ऊंट आदि की कुरबानी देते हैं।
ईद-उल-ज़ुहा को कैसे मनाया जाता है?
• ईद-उल-ज़ुहा के दिन मुसलमान किसी जानवर जैसे बकरा, भेड़, ऊंट आदि की कुरबानी देते हैं।
इस कुरबानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है: एक खुद के लिए, एक सगे-संबंधियों के
लिए और एक गरीबों के लिए।
• इस दिन सभी लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज़ पढ़ते हैं। मर्दों को मस्जिद व
• इस दिन सभी लोग साफ-पाक होकर नए कपड़े पहनकर नमाज़ पढ़ते हैं। मर्दों को मस्जिद व
ईदगाह और औरतों को घरों में ही पढ़ने का हुक्म है। नमाज़ पढ़कर आने के बाद ही कुरबानी की
प्रक्रिया शुरू की जा सकती है।
• ईद उल फित्र की तरह ईद उल ज़ुहा में भी ज़कात देना अनिवार्य होता है ताकि खुशी के इस मौके
• ईद उल फित्र की तरह ईद उल ज़ुहा में भी ज़कात देना अनिवार्य होता है ताकि खुशी के इस मौके
पर कोई गरीब महरूम ना रह जाए।
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