श्रुतपंचमी पर्व (Shrutpanchami Parv)
जैन धर्म को मानने वाले श्रद्धालु प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पंचमी तिथि को श्रुतपंचमी का पर्व मनाते हैं.
जैन धर्मी ऐसा विश्वास करते हैं कि आचार्य श्री धरसेन जी महाराज की प्रेरणा से मुनि श्री पुष्पदंत जी महाराज
एवं मुनि श्री भूतबली जी महाराज आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व गुजरात में गिरनार पर्वत की गुफाओं में ज्येष्ठ
शुक्ल पंचमी के दिन ही जैन धर्म के प्रथम ग्रन्थ श्री षटखंडागम की रचना पूर्ण किया था और इसीलिए वे इस
एतिहासिक तिथि को श्रुतपंचमी पर्व के रूप में मनाते हैं. ज्ञान की आराधना का यह महान पर्व मानव समाज को
वीतरागी संतों की वाणी, आराधना और प्रभावना का सन्देश देता है. इस पावन दिवस पर श्रद्धालुओं को श्री धवल,
महाधवलादि ग्रंथों को विराजमान कर श्रद्धाभक्ति से महोत्सव के साथ उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए और
सिद्धभक्ति का पाठ करना चाहिए. अज्ञानता के अन्धकार को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फ़ैलाने वाले इस महापर्व
के सुअवसर पर हमें पुराने ग्रंथों, शास्त्रों और सभी किताबों की देखभाल करनी चाहिए, उनमें जिल्द लगवानी चाहिए
,शास्त्रों और ग्रंथों के भण्डार की सफाई आदि करके शास्त्रों की पूजा विनय आदि करनी चाहिए.
इस पावन पर्व के सुअवसर पर जैन धर्मावलम्बी बैंडबाजों के साथ शास्त्रों और ग्रंथों की शोभायात्रा निकालते हैं.
इस दौरान शोभायात्रा का स्वागत भक्तजन पुष्पवर्षा करके करते हैं. इस यात्रा में बड़ी संख्यां में जैन धर्म के प्रति
श्रद्धा रखनेवाले शामिल होते हैं.
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